अष्टावक्र गीता-दोहे -6
अष्टावक्र-गीता(दोहे)-6
यथा शर्करा इक्षुरस,में संबंध अनूप।
वैसे ही मैं विश्व हूँ, अखिल विश्व मम रूप।।
लगे आतमा विश्व यह,जब रहता अज्ञान।
सर्प-रज्जु-भ्रम दूर हो,जब होता है ज्ञान।।
करे प्रकाशित विश्व को,मम प्रकाश यह रूप।
स्वयं प्रकाशित "मैं" रहूँ,सत्य प्रकाश अनूप।।
केवल भ्रम-अज्ञान से,लगे विश्व मम वास।
भानु-किरण जल,रज्जु अहि,सीप रजत विश्वास।।
हो विलीन मुझमें सदा,मम निर्मित संसार।
नीर उर्मि,घट मृत्तिका,कंगन कंचन-सार।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Gunjan Kamal
20-Feb-2024 02:36 PM
👏🏻👌🏻
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Mohammed urooj khan
19-Feb-2024 11:49 AM
👌🏾👌🏾👌🏾
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Varsha_Upadhyay
18-Feb-2024 10:27 PM
Nice
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